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मंगलवार, 13 फ़रवरी 2018
हुआ बबाल आज फिर, किसी बयान पर यहाँ
[बहर-ए-हजज़ मुसम्मन मक़बूज़]
1212 1212 1212 1212
नहीं लगाम लग सकी कभी जुबान पर यहाँ।
हुआ बबाल आज फिर, किसी बयान पर यहाँ।।
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मरीज़े इश्क़ की दवा हक़ीम कर सका नहीं
[बहर-ए-हजज़ मुसम्मन मक़बूज़]
1212 1212 1212 1212
बिसात-ए-गैर क्या है जब, नदीम कर सका नहीं।
मरीज़-ए-इश्क़ की दवा हकीम कर सका नहीं।।
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होगा दीदार उनका कभी न कभी
न जीने की तमन्ना है, न मरने का इरादा है
वो मेरी बर्बादी की कहानी लिख रहे है
मिला है तोहफा-ए-दिल, लगाने के लिए
सारी कायनात से, अनजान बना बैठा हूँ
आज ज़िन्दगी का, इक राज़ कह दिया उससे
मोहब्बत भी हमारे दिल पे, कैसे जोर खाती है
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