नवगीतिका: २१२२ २१२२ २१२२ २१२
राष्ट्रहित का भाव जागे, देश का सम्मान हो।
विश्वगुरु संकल्पना का, आज फिर आह्वान हो।।
राष्ट्र की आराधना हो, और नित यशगान हो।,
देश का हर नागरिक, धनवान हो बलवान हो।।
मृत्यु अपने धर्म में, मिल जाए' तो सौभाग्य है,
दूसरों के धर्म का लेकिन नहीं अभिमान हो।।
धर्मक्षेत्रे कर्मक्षेत्रे, सर्वक्षेत्रे हो विजय,
नीति के पालक बनो सब, और निष्ठावान हो।।
त्याग निष्ठा औ समर्पण, भावना मन में रहे,
'दीप' अभिलाषा यही है, स्वर्ग हिंदुस्थान हो।
-प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप'
राष्ट्रहित का भाव जागे, देश का सम्मान हो।
विश्वगुरु संकल्पना का, आज फिर आह्वान हो।।
राष्ट्र की आराधना हो, और नित यशगान हो।,
देश का हर नागरिक, धनवान हो बलवान हो।।
मृत्यु अपने धर्म में, मिल जाए' तो सौभाग्य है,
दूसरों के धर्म का लेकिन नहीं अभिमान हो।।
धर्मक्षेत्रे कर्मक्षेत्रे, सर्वक्षेत्रे हो विजय,
नीति के पालक बनो सब, और निष्ठावान हो।।
त्याग निष्ठा औ समर्पण, भावना मन में रहे,
'दीप' अभिलाषा यही है, स्वर्ग हिंदुस्थान हो।
-प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप'
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